संयम और सिद्धि
हर एक मनुष्य अपने जीवन में अनेक प्रकार के मनोरथ सिद्ध करना चाहता है परन्तु किसी को आंशिक और और किसी को सम्पूर्ण सफलता प्राप्त होती है और कोई बिल्कुल निष्फल ही रह जाता है। फिर, कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके हाथ में ऐसी सिद्धि होती है कि लोग अपने मनोरथों के सिद्धि के लिए उनका परामर्श लेने अथवा आशीर्वाद लेने आते है। प्रश्न उठता है कि मनुष्य को सिद्धि कैसे प्राप्त होती है?
गहराई से विचार करने पर हम इस निर्णय पर पहुंचेंगे कि सफलता अथवा सिद्धि मुख्य रूप से 10 बातों पर आधारित है- यत्न,बुद्धि, शक्ति, एकाग्रता, अवधि, आत्मविश्वास, दृढ़ता, उपयुक्त मनोदशा, त्याग-तपस्या तथा भाग्य। अब हम इनमें से कुछ के महत्व का संक्षिप्त उल्लेख करेंगे-
ठीक यत्न
हर एक कार्य के लिए यत्न तो करना ही पड़ता है। कहावत भी है कि यद्यपि शेर बलवान वन्य पशु है तथापि उसे उठकर शिकार को काबू करने का यत्न तो करना ही पड़ता है; शिकार स्वयं उसके मुँह में नहीं आ पड़ता। हमें याद रखना चाहिए कि हम जितना काम करेंगे, हमें उतनी कामयाबी मिलेगी। साधना के बिना सिद्धि नहीं होगी। अतः जो व्यक्ति पूर्ण सिद्धि चाहता है, उसे चाहिए कि पूर्ण रीति से जी-जान लगाकर प्रयत्न करे।इस संसार में जो करता है, वही पाता है। यहां करनी-भरनी का ही खेल है। यहां करते की विद्या है। इस नियम को ध्यान में रखते हुए हमें प्रयत्न पूरा करना चाहिए, तभी पूरी सिद्धि प्राप्त होगी। अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करने के लिए भी खूब पुरुषार्थ करने की ज़रूरत होती है, बहुत तप करना होता है,योग लगाना पड़ता है और सेवा करनी पड़ती है।
बुद्धि
बुद्धि तो सिद्धि के लिए मनो आवश्यक ही है। बुद्धि द्वारा ही मनुष्य विधिपूर्वक कार्य करता और विधि, सिद्धि की अग्रगामिनी है। मनुष्य कर्मेन्द्रियों द्वारा ही कार्य करता है परन्तु हमें याद रखना चाहिए कि कर्मेन्द्रियाँ मन के अधीन होती हैं और यदि ये सद्बुद्धि के अधीन हो तो सहज प्राप्ति होती है। बुद्धि के बल को शरीर के बल से बड़ा माना गया है तभी तो लोग पूछा करते हैं, 'अक्ल बड़ी या भैंस?'बुद्धि में ज्ञान धारण होता है और ज्ञान द्वारा ही गति अर्थात क्रिया होती है और क्रिया से ही कार्य सिद्ध होता है। जब कोई कार्य बिगड़ जाता है तो लोग कहते हैं, 'तेरी बुद्धि को क्या हुआ था? क्या तेरी अक्ल पर पर्दा पड़ गया था?' यह भी कहा गया है कि 'जब किसी मनुष्य के बुरे दिन आते हैं तो उसकी बुद्धि मारी जाती है।' जो व्यक्ति उल्टा कार्य करता है, उसके लिए लोग परमात्मा से प्रार्थना करते हुए कहते हैं, 'हे प्रभु, इसे सद्बुद्धि देना।' इन सभी बातों से स्पष्ट है कि बुद्धि के साथ सिद्धि का सीधा सम्बन्ध है।
इसके अतिरिक्त हम यह भी देखते हैं कि संसार में मनुष्य ने वैज्ञानिक अविष्कार करके तत्वों पर जो विजय प्राप्त की है अथवा बड़े-बड़े साधनों को सिद्ध करने का जो आश्चर्यजनक कार्य किया है, वे सब भी बुद्धि की ही उपलब्धियां हैं। बुद्धि द्वारा वह ऐसा शक्तिशाली बेम बना सकता है कि जिस द्वारा बड़े-बड़े नगर भी कम्पायमान हो जाते हैं। बुद्धि ही के बल से मनुष्य ऊपर मंगल ग्रह तक और निचे समुद्र-तल तक पहुंचा है और जहां एक ओर उसने परमाणु के भी अंदर के भेड़ों को खोज डाला है, वहां उसने जीव-शास्त्र में भी नित्य नए शोध-कार्य द्वारा मनुष्य को मृत्यु के मुख से भी निकालकर वापिस लाने का समर्थ यत्न किया है। तो देखिये, सुख-स्वास्थ्य के कितने ही साधन बुद्धि की ही तो उपलब्धियां हैं।
केवल भौतिक सफलता ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक सिद्धियों की प्राप्ति के लिए भी बुद्धि की नितांत आवश्यकता है। बुद्धि द्वारा ही मनुष्य आत्मा और परमात्मा जैसे सूक्ष्म विषयों को ग्रहण कर इतना महान बन जाता है कि लाखों-करोड़ों लोग उसके आगे नतमस्तक होते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि बुद्धि भी एक बहुत बड़ी शक्ति है और सिद्धिदायिनी है। असामान्य सिद्धियां अथवा अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने में इसका भी बड़ा स्थान है।
शक्ति
भौतिकी शास्त्र वाले तो हर एक कार्य की सिद्धि, शक्ति या ऊर्जा द्वारा ही मानते हैं। बात है भी ठीक ही। सभी सिद्धियां शक्ति के अधीन होकर रहती हैं। इसलिए लोग शक्ति की आराधना करते और शक्ति का संचय करते हैं। कमज़ोर तो कुचला जाता है। शक्तिशाली ही शासन करता है और समर्थ ही सुरक्षित रहता है।शक्तियां अनेक प्रकार की हैं- तन की शक्ति, मन की शक्ति, मस्तिष्क की शक्ति, धन की शक्ति, सहन-शक्ति, राज शक्ति, नैतिक शक्ति इत्यादि। परन्तु इन सभी में से विचार शक्ति सर्व प्रमुख है। विचारों ने ही दुनिया में बड़ी-बड़ी क्रांतियां लाई हैं। यदि विचार और आचार मिल जाएं तो वे संसार को स्वर्ग बना सकते हैं और यदि विचार और दुराचार मिल जायें तो वही संसार को नर्क बना देते हैं। विचार, पर्वतों को हिला कर रख देते हैं, समुन्द्रों में से भी अपना मार्ग बना लेते हैं, रेगिस्तानों में भी हरियाली ला सकते हैं और असंभव माने जाने वाले कार्यों को भी संभव बना सकते हैं। अतः विचार शक्ति ही वह अद्भुत शक्ति है, जिससे अद्भुत सिद्धियां होती है। आज हम संसार में अनेक प्रकार की शक्तियों का प्रयोग देखते हैं जिनमें विद्युत शक्ति, परमाणु शक्ति, ईंधन शक्ति, चुंबकीय शक्ति, ताप शक्ति इत्यादि के नाम उल्लेखनीय हैं परन्तु वह परमाणु से अगण्य गुणा शक्तिशाली है। मन में चुंबकीय शक्ति भी है और विस्फोटक शक्ति भी, तभी तो वह दूसरों को अपने प्रेम से आकर्षित भी कर लेता है, घृणा से हटा भी देता है और क्रोध द्वारा स्थिति को भयंकर भी बना देता है। मन में ताप द्वारा उत्पन्न होने वाली शक्ति भी है और विद्युत् द्वारा पैदा होने वाली शक्ति से भी अधिक प्रबल, अधिक तीव्रगामी संकल्प शक्ति भी। अतः यूँ तो सब प्रकार की शक्तियां अपने-अपने कार्य को सिद्ध करने वाली हैं परन्तु मन की संकल्प शक्ति इतनी तीव्रगामी है कि वह स्थान और समय की रुकावटों को भी उलाँघ कर भूत और भविष्य में अथवा ब्रम्हांड के इस छोर से उस छोर तक अविरुद्ध गति से कहीं-की-कहीं जा सकती है।
एकाग्रता
निस्संदेह; प्रयत्न, बुद्धि तथा शक्ति, सिद्धि को देने वाले तो हैं परन्तु यदि इनका एकाग्रता से प्रयोग किया जाए तो ही इनसे बहुत बड़े-बड़े कार्य सिद्ध हो सकते हैं। एकाग्रता से मनुष्य बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल ढूंढ निकालता है।प्रयत्न की एकाग्रता से वह बड़े-बड़े डैम, बड़ी-बड़ी गुफ़ाएँ, गगन-चुम्बी भवन, महाकाय जलपोत, वायुयान इत्यादि बनाकर तैयार कर देता है। यदि मनुष्य प्रयत्न में एकाग्रता न लाये तो उसके कार्य अधूरे और असफल रह जाते हैं। यदि एक मनुष्य, किसी एक ही स्थान पर 15-20 फुट गहरा गड्ढा खोद देता है तो वह अपने लिए वहां पानी निकाल लेता है और यदि वह 15 स्थानों पर एक-एक फुट मात्र खोदता है तो उससे उसका जल का प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। तभी तो लोग कहते हैं कि जो काम करो,उसमें पूरी तरह से लगकर उसे पूरा करो।
यही बात हम शक्ति के बारे में भी कह सकते हैं। सूर्य की शक्ति को जब किसी उत्तल लेंस द्वारा एक स्थान पर एकाग्र किया जाता है तो उसमें जलाने की शक्ति आ जाती है। आज वैज्ञानिकों ने सूर्य के ताप को एकत्रित करके उसे विद्युत् में बदलकर घर में प्रकाश का यंत्र बना लिया है।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि मन, जो कि प्रयत्न और शक्ति को भी वश करने वाला है, को एकाग्र करने से क्या सिद्धि नहीं हो सकती होगी? जब प्रकृति के किसी कार्य पर मन एकाग्र करने से मनुष्य बड़े-बड़े साधन बना लेता है तो सर्वशक्तिवान परमात्मा पर एकाग्र करने से कौन-सी सिद्धि प्राप्त करना असाध्य होगा?
अतः सफलता या सिद्धि की प्राप्ति के लिए निरंतर, लगातार, अखंड अथवा एकरस पुरुषार्थ करने की ज़रूरत है वरना स्वयं रुक जाने से सिद्धि भी रुक जाती है।
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