एक शब्द सब आसान कर देगा!!
कौन-कौन एंजेल बनने के लिए तैयार है? तो इसके लिए मैजिक तो कोई होगा नहीं। हम अभी एक लेवल पे है और हम ऊपर उठना चाहते हैं एंजेल बनना चाहते हैं। तो दोनों में फर्क क्या है अभी? क्या है मेरे अंदर आज जो एक एंजेल में नहीं होगा? और क्या है एंजेल में जो मेरे अंदर नहीं है? डिफ्रेंस क्या है एक एंजेल में और मुझ में? एंजेल लाइट होगा। लाइट होगा मतलब कोई ह्यूमन नहीं है जो उड़ रहा है। लेकिन वो सिंबॉलिक है जो मन से लाइट है,जिसके मन में कोई भारीपन नहीं है,कोई बोझ नहीं है। वो क्या करेगा सारा दिन उड़ता रहेगा। एंजेल लाइट होगा और क्या होगा एंजेल? आज में क्या हूँ और फरिश्ता जो मुझे बनना है दोनों में क्या फर्क है? अपने लिए देखें स्पेसिफिक। क्योंकि हर एक का ट्रांसफॉर्मेशन अलग होगा।एक अपने को देखे और एक अपने फ़रिश्ते स्वरुप को देखें। मेरे बच्चे कहना ही नहीं मानते...इसमें मैं कैसे रियेक्ट करूंगा/करूंगी और एंजेल पैरेंट कैसे रियेक्ट करेगा? कोई सामने से बहुत सवाल पूछ रहा है, गुस्सा कर रहा है उसमे मई कैसे रियेक्ट करूंगी और एंजेल कैसे रियेक्ट करेगा!
तो अब बताइये हमारे अंदर और एंजेल के अंदर क्या फर्क है? फ़रिश्ता धैर्य वाला होगा ,पीसफुल , पवित्र ,ईगो लेस ,रेहम करेगा,क्षमा करेगा,ब्लैसिंग देगा सबको। तो हम सब फर्क देख सकते हैं। एंजेल को पता ही नहीं होगा जैलेस का,कम्पैरिजन का , नफरत का। गुस्सा तो फ़रिश्ते को पता ही नहीं होगा कि क्या होता है। तो अब बताइये एंजेल बनना है?
आपको लगता है ये पोसिबल है? पोसिबल है.....नो एंगर, नो जैलेसी,नो कम्पैरिजन पॉसिबल है?
आप बस एक थोट अपने दिमाग से निकाल दीजिये कि ये पोसिबल नहीं है या ये मुश्किल है। क्योंकि जैसे ही हमने अपने मन को कहा की मुश्किल ,तो हमने अपने काम को खुद मुश्किल बना लिया ये कहके। हर थोट एक रिएलिटी बन रही है। आप सब ये जानते है कि संकल्प शक्ति बीमारियां क्रिएट कर सकती हैं और बिमारियों की ठीक भी कर सकती है। इतनी शक्ति है थोट्स में। तो अगर हम कहेंगे की ये मुश्किल है तो सच में हमारे लिए मुश्किल हो जाएगा। और अगर हम अपने आप को कहेंगे की इतने सारे काम कर लिए जीवन में तो संस्कार बदलना क्या बड़ी बात है,तो हम आसानी से खुद को बदल पाएंगे। अपने मन को एक बच्चा बनाकर अपने मन को धीरे धीरे वो छोटी छोटी बातें सीखनी हैं जो जीवन में उसको सीखना भूल गए थे कि कैसे सोचना है। जबसे हम पैदा हुए और जब हमारे बच्चे पैदा हुए तो हमने उनको बस यही सिखाया है कि बोलना कैसे है पढ़ना कैसे है लिखना कैसे है,पर ये नहीं सिखाया की सोचना कैसे है!!संस्कार मतलब हैबिट,आदत। कोई भी हैबिट कैसे क्रिएट होती है?कोई भी पर्टिकुलर चीज़ एक तरीके से 10 या 20 बार करलो तो वो आदत बन जाती है। अगर वो आदत हमे बदलनी है तो क्या करना पड़ेगा? उसी चीज़ को एक अलग तरीके से करना है 10-20 दिन। आदत बदल जाती है। तो ये तो मुश्किल नहीं है। बस होता क्या है बहुत समय से एक चीज़ को एक तरीके से करते-करते वो चीज़ आटोमेटिक मोड में चली गयी है। और अब हमें वो पता भी नहीं चलता कि वो हम कर रहें हैं, लगता है वो अपने आप हो जाता है। जब हम इरीटेट होते हैं तब हमें ऐसा नहीं लगता की हम कोन्शियस्ली डिसाइड कर रहे हैं इरीटेट होने का। बात आती है और हम इरीटेट हो जाते हैं। और उससे भी बड़ी बात आती है तो हम गुस्सा हो जाते हैं। हम गुस्सा करते हैं,ये हम अवेयर नहीं है। सिर्फ कुछ दिन लगते हैं कोई भी आदत को बदलने के लिए। बस थोड़े दिन अटेंशन रख के आदत चेंज। तो आज से हम डिसाइड करते हैं कि हमें ये संस्कार छोड़ना है और कुछ दिन उसपे अटेंशन रख के,उस हैबिट को चेंज करना है।
पोस्ट पढ़ने के लिए शुक्रिया। अगर पसंद आये तो औरो तक भी पहुंचाए।
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