प्रश्न हमारे, उत्तर दादी जी के।
दादी जी से बातचीत।
प्रश्न:
सबको अपना समझें लेकिन डिटैच रहें, लव रखें लेकिन फँसे नहीं, इसके लिए क्या करें?
उत्तर:
हिम्मत बच्चे की है, मदद बाप की है। नियत साफ है तो जो संकल्प करते हैं वो हो जाता है। ड्रामा बहुत अच्छा है क्योंकि ड्रामा अनुसार जो बाबा कराता है वो हम करते जा रहे हैं। ड्रामा कहता है,यह नूँध है तो तुम चलती चल, आगे बढ़ती चल। सिर्फ मैं और मेरा शब्द संभलकर बोलो। परमपिता परमात्मा मेरा है, ऐसा कोई और कह नहीं सकता है सिवाय हम बाबा के बच्चों के। सारी दुनिया का चक्र लगाके देखो,कोई की ताकत नहीं है जो कहे, परमात्मा मेरा है। हम मेरा कहते हैं तो डिटैच रहते हैं, अटैच नहीं रहते हैं। लव है लेकिन लव में फँस नहीं जाते हैं। लव है लेकिन नेचर में नष्टोमोहा नेचर है। ममता भी नहीं है कि यह मेरा है। मेरा वही बाबा है जो ऊपर रहता है इसलिए सामने बाबा को देखो। सतयुग में आने के लिए क्या पुरूषार्थ है और परमधाम में जाने के लिए क्या पुरूषार्थ है? परमधाम में जाने और सतयुग में आने की दोनों तैयारी अभी करनी है। बाबा को परमधाम में याद करो। राइट क्या है, रांग क्या है, अब यह सोचने की बात नहीं है, सब एक्यूरेट है।
प्रश्न:
दादी जी, आपकी हरेक के प्रति क्या भावना रहती है?
उत्तर:
आत्म-अभिमानी स्थिति ऐसी हो, जो देखे, उसे बाबा दिखाई पड़े। जो मुझको देखते हैं, मैं उनको नहीं देखती हूँ। मेरी यह भावना है कि ये बाबा को देखें। बाबा बहुत अच्छा है। जितना याद करते हैं उतना जागती ज्योति बनते हैं। यह अपना है, यह पराया है, ऐसे भी नहीं, संगमयुग में हरेक को अपना समझना है। हम राजयोगी हैं, कर्मयोगी हैं तो हमारा टाइम बहुत वैल्युबुल है। हर श्वास, संकल्प में बाबा तेरा बनने में सुख बहुत मिलता है। दुःख का नाम-निशान नहीं है। सुख होने से मैं औरों को सुख ही दूँगी ना। जिसके पास जो है वही तो दोगे ना। मेरा बाबा शिक्षक भी है तो रक्षक भी है। बाबा की शिक्षाओं से सुख महसूस हो रहा है। मेरी हर एक के प्रति यही भावना रहती है कि ये सबको सुख दें , सुख लें। सुख देंगें तो रिटर्न में सुख ही मिलेगा। अभी यह बताओ कि सबके दुःख दूर हो गए हैं ना! दूसरों के दुःख दूर करने वाले के अपने दुःख आपेही दूर हो जाते हैं। यह ड्यूटी बहुत अच्छी है, दूसरों के दुःख दूर करते चलो।
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