स्नेह की पूँजी...
धन ,शरीर निर्वाह अर्थ एक महत्वपूर्ण साधन है इसलिए आज मनुष्य दिन-रात भाग-भाग कर धन कमाता है। उस धन के द्वारा स्वयं तथा परिवार के लिए खुशी और सुख-शांति की चाहना रखता है लेकिन धन कमाने की इस भागदौड़ में अनेक आत्माओं से जाने-अनजाने ईर्ष्या, घृणा और बेईमानी का हिसाब बना लेता है इसलिए सम्मान, प्यार और विश्वास खो देता है।
धन कमाना गलत नहीं है लेकिन इसके साथ-साथ सच्चे स्नेह की पूँजी इकट्ठी करनी भी ज़रूरी है। बिना स्नेह के आज वह नफरत, शक तथा अकेलेपन की अग्नि में जल रहा है। हम देखते हैं कि जितनी भी मशीनें काम में ली जाती हैं उन्हें सहज बनाने के लिए स्नेहक(Lubricant) आदि इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐसे ही सच्चे रूहानी स्नेह से रिश्तों रूपी मशीन, जिसमें जंग लग गई है, बहुत सरलता से चल पाएगी।
स्नेह से सहयोग व सहयोग से सफलता
कुछ वर्षों पहले तक गाँवों में जब किसी के घर में कोई विशेष कार्य होता था तो सभी रिश्तेदार और आस-पास के लोग बड़े प्यार से सहयोगी बनते थे जिससे बिना अधिक खर्च किए कार्य सुन्दर रीति से संपन्न हो जाता था। आज बहुत धन लुटाकर भी न तो वैसी खुशी, आनंद और सफलता प्राप्त होती है, न कार्य ही श्रेष्ठता से संपन्न हो पाता है क्योंकि दिलों में दूरियां बढ़ गई हैं।
जहाँ स्नेह वहाँ मेहनत नहीं
स्नेह, मेहनत को समाप्त कर देता है। जैसे माँ बच्चे के लिए कितनी मेहनत करती है लेकिन स्नेह होने के कारण वो मेहनत महसूस नहीं करती। जीवन में रिश्तों कि भूमिका अहम होती है तथा रिश्ते बनते हैं त्याग से। जहाँ स्नेह होता है तो त्याग स्वतः हो जाता है। सबसे सच्चा स्नेह है ईश्वर का, जिसे प्राप्त करके मनुष्य सबकुछ प्राप्त कर लेता है। शिवबाबा कहतें हैं, बच्चे, बीज को पानी दोगे तो सारे वृक्ष को मिल जाएगा। परमात्मा पिता हैं इस मनुष्य सृष्टि के बीज,उनसे प्रीत लगाकर हम सर्व प्राप्तियों के हकदार बन सकते हैं।
इतनी मेहनत किसलिए?
जीवन हमारे लिए है न कि हम जीवन के लिए। शरीर अमूल्य वरदान है प्रकृति का। प्रकृति ने कितने प्रेम से हमें सब सुविधाएं दी है ताकि हम खुशहाल रहे और प्रकृति की रेशमी गोद में अपनी थकान मिटा लें। कितने खूबसूरत फूल , पत्ते, पौष्टिक शाक-सब्जियां हमारे लिए उसने उपहार में दिए। दूर तक फैला, निरंतर रंग बदलता आसमान, दिन में स्वर्णिम सूरज से और रात्री में चांदी के रंग के चांद और सितारों से श्रंगारित सृष्टि-रंगमंच हमें रिझाने की कोशिश करता रहता है। धरती पर फैली हरियाली, संगीत की लहरियाँ छोड़ती नदियाँ, झरने, सागर सब हमारे लिए ही तो बनाए गए हैं? ऊँचे-ऊँचे गगनचुंबी पर्वत अपनी शोभा किसके लिए बिखेर रहे हैं?
और हम ! क्या हमने अपने जीवन में इस सौंदर्य को निहारने के लिए समय छोड़ा है? क्या कभी इस मुफ्त की सुंदरता के लिए आभार व्यक्त किया है? क्या कभी इसे और संवारने का प्रयास किया है? अरे! संवारना तो दूर कभी इसे कम से कम ज्यों का त्यों रखने का भी प्रयास किया है? उल्टा इसका शोषण कर, इसे खोखला करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी है।
बेमोल चीजों की कदर नहीं और मोल से वस्तुएं खरीदने के लिए आज पैसा कमाने की अंधी दौड़ में दौड़ते चले जा रहे हैं हम। मैंने बहुत लोगों को देखा है कि मशीन की तरह वह काम करते हैं सुबह से रात तक। यदि रात ना आए तो वे आगे भी चक्करघिन्नी बन घूमते रहे। खाना खाने की फुर्सत नहीं, परिवार से बात करने का, उनके साथ कुछ पल बिताने का समय नहीं, और तो और जिस शरीर से इतना काम लेते हैं उसको भी नजरअंदाज कर जाते हैं ये लोग! बहुत बार दवाई लेकर भी काम पर निकल जाते हैं और दवाई साथ भी ले जाते हैं ताकि कोई कमजोरी, बीमारी उनके काम में रूकावट न डालें। कोई ब्लड प्रेशर, मधुमेह, बुखार, सिरदर्द इन्हें काम करने से नहीं रोक पाता। कई लोग तो टूटी टांग-बाँह लिए व्हील चेयर पर भी काम करने निकल जाते हैं। काम, इनके लिए नशा बन गया है, यह कहें तो भी शायद गलत न होगा।
काम से पहले है, शरीर, परिवार तो उनका ध्यान रखें। उनके साथ प्रेम से रहें, समय बिताएँ।
ये पोस्ट पढने के लिए धन्यवाद।
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